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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Others

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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Others

क्या सत्य? क्या मिथ्या है?

क्या सत्य? क्या मिथ्या है?

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रो जाता है अक्सर भी

दुनिया को हँसाने वाला।

खो जाता है अक्सर भी

सिने से लगाने वाला।।

बढ़ती है जब अवसादों की

बोझ किसी के सर पे।

हो जाता है अक्सर भी

जो कभी न होने वाला।।

होता न विश्वास तनिक भी

अपने इन कानों पर।

नाज़ था पूरे भारत को जी

इनके कारनामों पर।।

ख़ुदकुशी है कायरता

कह जग को जगाने वाला।

कैसे खुद को मिटा लिया

हर बार ये कहने वाला।।

क्या सत्य, क्या मिथ्या है

वो रहा न कहने वाला।

चिर निद्रा में लीन हुआ

हर सांस में बसने वाला।।



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