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क्या सही और क्या गलत

क्या सही और क्या गलत

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कितनी अच्छी लगती हैं,

ये रँग - बिरंगी तितलियाँ,

इन्हे छूने को जी ललचाये,

ऐसी होती है तलब,

ये है बुढ़ापे की सनक।


यूँ तो कुछ करने का अब दम नहीं,

मगर फिर भी ये मन भरे नहीं,

कुछ नहीं तो इनका दीदार ही चैन दिलाये,

ये दिल माँगे इनकी एक झलक,

ऐसी होती है बुढ़ापे की सनक।


अभी ये दिल जवान है,

इस गलतफहमी से बुड्ढे परेशान हैं,

जवान लड़कियों को देख अपना मन बहलायें,

उन्हे दिल में उतारें मूंद पलक,

ये है बुढ़ापे की सनक।


जानते हैं नाम उनका "ठरकी" पड़ा,

उम्र में भी सब उन्हे कहें बड़ा,

मगर अपनी आदत पर खुद झुँझलायें,

ये सोच के कि क्या सही और क्या गलत,

ये है बुढ़ापे की सनक।


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