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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

क्या मिल गया?

क्या मिल गया?

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रिसते लाल रंग का उबटन 

खरोंचे भी ढेर सारी,

सिसकियों के समंदर 

बेजान जिस्मो पर,


यह कैसी चित्रकारी ?

लहू से लहू मिल गया,

जिस्म भी हाथ मिला लिए अब,

एक हो गए , सब कुछ गंवा कर,


दांव लगाने वाले बाजी पर,

लेटे है चुपचाप,

कुछ जीत कर, कुछ हार कर।

यूं ही मुस्कुरा दिया


दूर बैठा पथिक अनजान,

कल तक भरा पूरा नगर था,

आज लगता शमशान।


गले मिल गए होते,

हाथ मिलाया होता,

न मौत को गले लगाया होता।


यह पथिक भी खिलखिलाता,

खिन्न मन से ना मुस्कुराया होता।


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