क्या लिखूं
क्या लिखूं
लिखने को तो मैं सारा जहाँ लिखूं
पर बात भगवान की हो तो मैं क्या लिखूं
बस बात इत्ती सी है कि उनका साथ लिखूं
जब वो मेरे दूर हैं, तो हर गम लिखूं
वो साथ हैं मेरे, यही एहसास लिखूं
वो शामिल होते हैं हर जख्म मेरे
इसलिए माता-पिता ही भगवान लिखूं
लिखने को तो मैं सारा जहाँ लिखूं
पर बात भगवान की हो तो मैं क्या लिखूं
मैं प्यार लिखूं या नफ़रत ए जहाँ लिखूं
मैं ख्वाब लिखूं या नसीहत ए जहाँ लिखूं
मैं रोष लिखूं या शराफत ए जहाँ लिखूं
हो जहां भाईचारा वो प्यारा हिन्दोस्तां लिखूं
लिखने को तो मैं सारा जहाँ लिखूं
पर बात भगवान की हो तो मैं क्या लिखूं
मैं बचपन लिखूं या शरारत ए बचपन लिखूं
मैं प्रबुद्ध लिखूं या शराफत ए प्रबुद्ध लिखूं
मैं ममता लिखूं या तात की छत्रछाया लिखूं
माता-पिता ही भगवान हैं यही इक नाम लिखूं
लिखने को तो मैं सारा जहाँ लिखूं
पर बात भगवान की हो तो मैं क्या लिखूं।।
