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Mukesh Bissa

Tragedy

3  

Mukesh Bissa

Tragedy

क्या खता है मेरी

क्या खता है मेरी

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338



क्या खता है मेरी

लांछन मेरे पर

ही लगाए जाते हैं,

ढेरों प्रश्न मुझ पर

ही उठाये जाते है

क्यों सम्मान नहीं होता मेरा

बस अपमान ही होता

रहा है प्रतिदिन

टकटकी लगाकर

घूर घूर कर

ही मुझे देखा जाता है,

क्यो मुझे जीने का 

अधिकार नही है

क्यों मिलता 

तिरस्कार ही सदैव मुझे

सिर्फ इसलिए 

की अबला हुँ मैं

क्यों आखिर मेरे जज्बात 

से ही खेला जाए

सदैब अपशब्द ही

कहे जाए मुझे

क्यों मेरे दामन को 

दागदार जाता हैं

क्यो मुझे मर जाने के लिए 

यूँ ही छोड़ दिया जाता हैं

सिर्फ इसलिए ना

एक अबला हुँ मैं

 भेड़ियों के 

जैसे लोग

टूट पड़ जाते है

चारों ओर से 

मेरा बस शोषण 

ही किया जाता है

नही निभा रहे वो अपने वादे 

नही करते वो पूरी रस्में

तो क्या गलती हैं 

मेरी कोई बताओ तो जरा

मुझपर कोई सवाल 

अब उठाओ तो जरा

मुझे मेरा कसूर कोई

अब तो बता दीजिये

लेकिन सिर्फ मुझपर

सिर्फ इल्जाम लगाया गया

मुझे ही कष्ट पहुँचाया गया

बात न मेरी सुनी गई

कष्टों को बस सहती गई

यूँ तो रचते ढोंग

इस आधुनिकता का

लेकिन दकियानूसी 

विचार अभी तक

मन मस्तिष्क में

विचरण कर रहे हैं

क्योंकि

एक अबला हूँ मैं



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