क्या देखा
क्या देखा
पूछते थे लहरों का पता बेफ़िक्री में
साहिल पर पहुँचे बेफिकर तो क्या देखा
जुनून-ऐ-वहशत हर क़तरे में भरा देखा
घर की दीवारों से तक़रीर करते थे
सामना ज़िंदगी से जो हुआ तो क्या देखा
दीवारों में फँसा वो इंसानी अक्स देखा
नहीं चाहिए उनको कुछ भी अनमोल
उनको तड़पते देखा तो क्या फिर क्या देखा
उनकी चिता को अपनी आग में जलते देखा
बदल रही थी दुनिया मुसल्सल
उनको बदलते देखा तो आँखों ने क्या देखा
अपने अक्स को उन आँखों में बदलते देखा