कविता भी रो देगी(बलात्कार पर)
कविता भी रो देगी(बलात्कार पर)
कविता भी रो देगी तड़पन आँसू बनके निलकेंगे
कितने चेहरे ऐसे ही रेत में बिखरेंगे
तड़पी हो देह जिसकी आत्मा भी क्यूँ न तड़पे
निकल गए कुछ, दम तोड़ा कुछ ने घुट के
बलात्कार अमानवता की सबसे चरम निशानी है
नरभक्षों की चढ़े बलि, मिले न्याय यह सबने ठानी है।