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Amit Tiwari

Tragedy Thriller

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Amit Tiwari

Tragedy Thriller

कविता भी रो देगी(बलात्कार पर)

कविता भी रो देगी(बलात्कार पर)

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कविता भी रो देगी तड़पन आँसू बनके निलकेंगे

कितने चेहरे ऐसे ही रेत में बिखरेंगे


तड़पी हो देह जिसकी आत्मा भी क्यूँ न तड़पे

निकल गए कुछ, दम तोड़ा कुछ ने घुट के


बलात्कार अमानवता की सबसे चरम निशानी है

नरभक्षों की चढ़े बलि, मिले न्याय यह सबने ठानी है।


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