वेतनपरस्त
वेतनपरस्त
एक अदना से आदमी उठता है
और सरदार बन जाता है
बोलता है या बकता है
परंतु वाक्यपटु कहलाता है
बाकी मुर्गे कि भांति बांग दे रहे होते हैं
उन्हें कोई इल्म नहीं
कि मानसिक बलात्कार भी होता है
बस आसमान ताकते हैं
एक अध्यापक जो
तथाकथित सवर्णी है
संस्कार के नाम पर
बच्चो को लहू चूसने की
शिक्षा देने की बाते करता है
कहता है बंटे हुए लोग
और विभाजित समाज
हमारी संस्कृति है और
इसे आगे बढ़ाना संस्कार
डर इस बात का है
कि आज की पीढ़ी इन्हीं की
शिक्षा को सत्य मानकर आगे बढ़ेगी
और अपनी समझ का कत्ल कर लेगी
पर, जिम्मेदार कौन ?
जो इनके खिलाफ आवाज़ उठाता है
उसे असंस्कारी कहकर
टाल दिया जाता है
अध्यापक होना सिर्फ
वेतनपरस्ती नहीं है
शिक्षा इतनी सस्ती नहीं है
देश बनाने कि बातें करने वाले
अपने को देशभक्त कहने वाले
चित्र को सोशल मीडिया
पर डाल देने से
और देशभक्त लिखने से
कोई देश भक्त नहीं होता
देशभक्ति खून खून में और
पसीने पसीने में अंतर नहीं समझती
वेतनपरस्त अध्यापक की सीख
वतनपरस्त नहीं होती।