असंवेदनशीलता
असंवेदनशीलता
असंवेनलशीलता अब हमारी
पहचान बन चुकी है,
कायरता अब बुद्धिमानी बन चुकी है
किसी का निवाला छीन लेना
अब आम बात है
बाज़ार हमारे घरों का ठेकेदार है,
हर कोई हर किसी से बड़ा है
भीड़ में भी अकेले खड़ा है
दिल की बात करो तो किससे
जो भी है वो भी उधेड़बुन में लगा है
उसके हृदय के आगे उसका
पेट खड़ा है
पेट अब पहले से काफी बड़ा है
पेट में कई कमरे हैं
जिसमे भोजन के अलावा भी
बहुत कुछ पड़ा है
इंसान इसी कुछ के लिये
बहुत लड़ा है
इस लड़ाई में वो संवेदना को
खो चुका है।