विवाह: त्यौहार भी मातम भी
विवाह: त्यौहार भी मातम भी
क्यों हम उस अंधी दौड़ में
शामिल हो जाते हैं
जहां विवाह को
समझा जाता है,
ढेर सारी गाड़ियों का काफिला
लज़ीज़ व्यंजन का अंबार
बेतुके कपड़ों को पहनना।
झूठे और बेमने ढंग से
हंसने का दिन
उपहारों में स्वयं के
दम्भ को लपेटकर,
संबंधी के सर पर
सवार होने का मौका
उपेक्षाओं में घिरे मन को
राजा या रानी
कि तरह संवारना।
अपने उबाऊ जीवन
को चमकती हुई रात में
टिमटिमाते हुए देखना
और स्वयं को जिंदा रहने की
सांत्वना देना।