कुंडलिया : "जात की घुंडी"
कुंडलिया : "जात की घुंडी"
घुंडी मन में जात की, रख दिखलाते प्यार।
ऊँच नीच के भेद का, गुप चुप करते वार।
गुप चुप करते वार, कटार हकों पर मारे।
बोल पिचासी बोल, सहो क्यूँ शोषण सारे।
लूट रहे अधिकार, पड़े क्यूँ लाकर कुंडी।
मन के अंदर देख, रहे नफरत की घुंडी।