कुछ तो बयां करती है
कुछ तो बयां करती है


पेड़ के पत्तों पर ठहरी
ये बारिश की बूंदे
चेहरे पर बिखरी हुई
गमों की सलवटें
पलकों में छिपी हुई
मिलन की हसरतें
कुछ तो बयां करती है।
इस शहर में अब मेरा
आशियाना बेघर सा लगे
खुद से बातें हो तो भी
वो अपना सा लगे
शिद्दत से इंतजार में अब
नम होती ये नज़रें
कुछ तो बयां करती है।
उसके सीने से लगकर
ये जहां जन्नत सी लगे
उसकी सांसे मिल जाए तो
एक नया जीवन सा मिले
उसकी राह में खड़े होकर
दिन ढले राह देखते रहे
कुछ तो बयां करती है।
उसके कदमों की आहट से
मन प्रफुल्लित होने लगे
उसके हाथों की छुअन से
अंग अंग कंपन करने लगे
उसकी तस्वीर को अब
एकटक होकर देखने लगे
कुछ तो बयां करती है।।