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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

कुछ नहीं बदलेगा

कुछ नहीं बदलेगा

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बीत जाएं चाहे कितनी ही सदियाँ भारत में कुछ नहीं बदलेगा,

दुर्योधनों के दंश की मारी द्रौपदी कृष्ण को ढूँढती वहीं खड़ी रह जाएगी।


ना बदलेगा आलम, मानवता अहं की मारी उरों के शमशान में ही दफ़न हो जाएगी

अपनेपन की शीत बयार मोहरे के पीछे छिप जाएगी।


सहरा में भागती सियासती नदियाँ नीतिमत्ता के समुन्दर में बदल जाएगी,

थकी हुई यांत्रिक गतिविधियां इंसानी भूख खा जाएगी।


धर्मांधता का चोला चढ़ाए त्रस्त इंसान अज्ञानता की बलि चढ़ जाएगा,

मानव अधिकार कानून की कतारें कागज़ पर ही रह जाएगी।


आदर्श और यथार्थ की अनुभूतियाँ स्वार्थ की क्षितिज पर डूब रही,

चाणक्य नीति को ढूँढती भूमि धर्म, संस्कृति और न्याय के मलबे में दबी रह जाएगी। 


एक ही देश में मतभेदों की असंख्य भरमार पले और हर मुद्दे पर लाठी उठे,

अखंड भारत की आस मन में धरी की धरी रह जाएगी।


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