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Madhu Gupta "अपराजिता"

Abstract Classics Fantasy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Abstract Classics Fantasy

कुछ लोग मिले

कुछ लोग मिले

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कुछ लोग मिले, जीवन में मुझे 

कुछ मिलकर मेरे साथ चले ..... 

कुछ चलते - चलते साथ मेरे, 

मुझसे आधे में नाता तोड़ चले ...... 

शिकवा, शिकायत या फिर हो गिला, 

ना मैंने उनके साथ कभी रखा..... 

हंसकर लिया जो भी जैसा भी मिला, 

ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया...... 

तुझसे मिलकर मैंने देखो,

जाने क्या - क्या कुछ सीख लिया....!! 


कुछ लोगों ने आ कर मुझमें, 

मेरे ही ना जाने कितने टुकड़े किये, 

ज़र्रा- ज़र्रा मुझे तोड़ दिया..... 

पर मैंने भी अपना सब कुछ

वक़्त के हाथों सौप दीया...... 

हारी ना टूटी ना उफ़ ही किया, 

बहती ही रही मैं बनके हवा....... 

ये ज़िंदगी तेरा शुक्रिया....... 

तुझसे मिलकर मैंने देखो,

जाने क्या - क्या ना सीख लिया.....!! 


जो साथ चले कुछ अपने थे, 

कुछ ऐसे भी, बे - नाम से थे..... 

जो दूर बहुत लेकिन हरदम, 

बनकर मेरा हम साया वो....... 

हर पल मेरे साथ चले, 

ऐ ज़िंदगी तेरा शुक्रिया..... 

तुझसे मिलकर मैंने देखो,

जाने क्या - क्या ना सीख लिया.....!! 


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