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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

कुछ भी ना था

कुछ भी ना था

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कुछ भी न था

आंचल रहता था तर-बतर

दुर्लभ अब वो आंचल हुआ,

रहता था जिसकी छांव में

मेरे साथ कुछ भी न था

जो देखा पीछे मुड़के।


बहन सरूपी वो संस्कृति

भाई सरूपी वो आदर्श

पृथ्वी रूपी माता पिता

प्रिये शीतलता पथ-प्रदर्शक

प्यारे सदस्य घर के सारे

बस पिछे छुटे हैं मेरे

मेरे साथ कुछ भी न था

जो देखा पीछे मुड़के।


माना इस चमक-दमक में

मैं इतना क्यों खो गया

बदसूरत को जानकर सुन्दर

क्यों पिछे लग लिया हूं मैं

अब रंग कर क्यों इसके रंग में

क्यों रोता चिल्लाता हूं मैं,

मेरे साथ कुछ भी न था

जो देखा पीछे मुड़के।


भुला सारी राहें घर की

इस जंगल बियाबां में आके

न जाने वो सुन्दर स्त्री भी

कहां गई मुझे यहां बिठाके

अब रोऊं या चुप हो जाऊं

घर की यादें कैसे भुला के।

मेरे साथ कुछ भी न था

जो देखा पीछे मुड़के।



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