कशमकश की बूंदें
कशमकश की बूंदें


बूंदों से खेलना आदत सी हो गई,
लगता है हमें उनसे मोहब्बत सी हो गई,
तलवारों से कट जाती है तस्वीरें,
पर मिटती नहीं हाथों पर बनीं की लकीरें।
महफूज़ है मेरे दिल में उसकी यादें,
धड़कनों में कशमकश हमेशा सी हो गई,
खींची जाती है पतंग डोर के सहायता से,
न जाने कबसे वह मेरा दौर हो गई।
सच कहे तो बूंदों में ही मोहब्बत होती है,
झलके आंखों से या बादलों से बरसती है,
वो बाकी है मेरे दिल की ज़मीन पर फिज़ा सी,
वह आफतों में भी मज़ेदार सी हो गई है।