करूँ मैं क्या अर्पण
करूँ मैं क्या अर्पण
हे प्रभु
करूँ मैं क्या अर्पण
फूल भी तेरे, पात भी तेरे
जल भी तेरा, सभी मिष्ठान भी तेरे
धूप, दीप, नैवेध्य सब सामान भी तेरे
ये तन भी तेरा, ये मन भी तेरा
सिर्फ श्रद्धा है मेरी अपनी
हूँ समर्पित स्वयंं मैं
मन समर्पित, तन समर्पित
और करूँ क्या अर्पण
सब कुछ आपने ही है दिया
बड़ा उपकार मुझ पर किया
इतनी शक्ति और देना
छल, दम्भ, झूठ से दूर रखना
ईर्ष्या, द्वेष न कभी छू पाए
मेरा मन इतना निर्मल हो जाए।।
