कृष्ण
कृष्ण
कृष्ण" शब्दार्थ द्योतक था, "काला" जिस जग में,
उस नाम को अपनाकर, ज्ञान का पर्याय बना दिया,
सोलह कलाओं से सुसज्जित कर, किरदार अपना,
माखन चोर नंद किशोर ने, स्वयं को विश्व गुरु बना दिया।
धर्म-अधर्म, कर्म -अकर्म, पाप पुण्य का ज्ञान,
अंधविश्वास के दायरों से ऊपर, तार्किक रूप में समझाया,
नटखट माखन चोर से कर्मयोगी तक के सफर का दर्शन कराया,
प्रेम बंधन नहीं, प्रेम जीवन है, ऐसे स्वतंत्र प्रेम का दर्शन कराया।
देवकी का त्याग, यशोदा का ममत्व, राधा की प्रतीक्षा,
अर्जुन का समर्पण, द्रौपदी के विश्वास, का सत्य रूप बतलाया,
भगवतगीता, को जीवन के हर पहलू का उत्तर बनाकर,
संसार के भ्रमजालों से, मुक्ति का आधार बताया।
हर मां की कोख में खेल रहे, ममत्व का नाम है "नंद किशोर ",
प्रेम के स्वतंत्र रूप की अनुभूति, युगल प्रेम है "मुरारी "
मित्रवत संयोग में योग ही नहीं, सहयोग का नाम है "माधव "
पूर्ण जीवंत जीवन की प्रेरणा, प्रकाश का नाम है "कृष्ण"।