ये जरूरी तो नहीं है
ये जरूरी तो नहीं है
हुश्न-ओ-इश्क ही बयां किया जाए ये जरूरी तो नहीं है
मेरी गज़ल तेरा दिल बहलाएये जरूरी तो नहीं है।
मार के मासूम बच्चियों को कोख में दफ़न करते हो
बेटा ही आगे वंश बढ़ाए ये जरूरी तो नहीं है।
छीन के खुशियाँ किसी की उजाड़ के घर किसी का
दुल्हा सर पे सेहरा सजाए ये जरूरी तो नहीं है।
क्यूँ नहीं सिखाते हो बेटों को जिम्मेदारियाँ सँभालना
हरदम बेटी ही फर्ज निभाए ये जरूरी तो नहीं है।
आखिर कब दोगे तुम उन्हें भी बराबरी का दर्जा
नारी सिर्फ घर ही चलाए ये जरूरी तो नहीं है
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वो भरते हैं घर अपना लूट के इस देश को
बेचारी जनता ही पीसी जाए ये जरूरी तो नहीं है।
बंद करो मज्लूमों को हर बात पे इस तरह सताना
गरीब हरदम हाथ फैलाए ये जरूरी तो नहीं है।
बनों खुद काबिल और देश बदलने काजज्बा रक्खो
नौजवां हाथ में बन्दूक उठाए ये जरूरी तो नहीं है।
ला मैं पढ़ूँ कुरान तेरा तू मेरी गीता पढ़ ले
पंडित-मुल्ला हमें धर्म सिखाए ये जरूरी तो नहीं है।।
देखो कहीं भड़क न जाए आग जो दबी बैठी है
'काफ़िर' चुपचाप सब सुनता जाए ये जरूरी तो नहीं है।