"ये बेटियाँ "
"ये बेटियाँ "
बेटियाँ ईश्वर का हैं उपहार,
अद्भुत,अमूल्य, गृह श्रृंगार।।
रौशन होती हैं कण-कण में,
महका करती हैं जीवन में।।
तन से होती ये नाज़ुक सी ,
मन से होती कुछ भावुक सी।।
बचपन में गुड़ियाँ कहलातीं ,
तितलियों संग बतियाँ बनातीं।।
बिखेरती हैं जब मंद-मंद मुस्कान,
जैसे हों विधाता की अनुपम वरदान।।
यौवनारंभ से प्रेयसी बन जातीं,
trong>जीवन के सुख दुःख की साथी।।
अन्नपूर्णा घर की हैं कहलातीं ,
त्योहारों को सब रंगों से सजातीं।।
ये दुर्गा, ये भवानी, विंध्वेसवरी,
लक्ष्मीबाई,जीजाबाई, सावित्री।।
गीता,सिंधु, साक्षी का परचम,
सानिया, सायना का वो आलम।।
सृजन करती हैं जन सृष्टि का,
सानी नहीं इनके समर्पण का।।
बेटी, बहन पत्नी और माता,
हर रूप इनके मन को भाता।
ये बेटियाँ होती जग की शान,
तुम सब करो मन से सम्मान।।