नुकसान क्या है?
नुकसान क्या है?
क्या इसमें मेरा
कोई नुकसान है
अगर मैं खुल के बताऊँ तुम्हें
कि मुझे आशाएं
रोज आवाज़ लगाती रहती हैं,
गहन तम से
और सुदूर आकाश से
जैसे कोई बच्चा मचल रहा हो
खेलने के लिए
अपने दोस्त को बुलाने को।
भीतर भीतर
पतझड़ के मौसम में
सुनसान बगीचे में अकेले टहलते
मेरे कान हमेशा
सुनते हैं मधुरतम स्वर लहरियां
पैरों के नीचे चरमराती
सूखी पत्तियों से।
मैं मुस्कराती हूँ
खड़े होकर रेगिस्तान में
देख कर तपती प्यासी रेत
जो जगाती है मेरी तृष्णा में
पानी का अहसास
बताती है मुझमें ही है
नखलिस्तान।
कभी ये भी लगता है
एक भांग की खेती भी है
मेरे अंदर,
जहां चिलम फूंकती है मेरी आत्मा
रोज सुबह शाम
और उड़ता रहता है मस्तिष्क
उम्मीदों के गगन में
इंटॉक्सिकैटेड।
कोई माने न माने
मैं मनमौजी सी लिखती हूँ
जरा अच्छी और बहुत अच्छी कविताएं
अपने लिए हमेशा ही
उनको अपना शाहकार मान कर
शब्दों की दुनिया में
बिना कुछ सोचे कौन क्या समझेगा
सोचेगा मेरे बारे में
यहां वहां, ऐसे वैसे।
अब बोलो,
बताओ मुझे कि नुकसान क्या है
मेरे सुनने, मुस्कराने, मानने,
फूंकने , लिखने और
हमेशा उम्मीदों से
इंटॉक्सिकैटेड होने में।
मैं रहूंगी
यूँ हमेशा उठती हुई
यहां।