कोरोना से डरो
कोरोना से डरो


मैं कोई लेखक नहीं हूँ,
लेकिन लिखता हूँ।
उसी विधा में,
जिस विधा में सुविधा हो।
आखिर दुविधा-विधा में क्यों हो?
वो बात और है कि
जिसकी प्रिय विधा काव्य है
वह गा नहीं सकता - कोरोना वायरस है कैसा?
जिसकी प्रिय विधा फोटोग्राफी है
वह खींच नहीं सकता चित्र - कोरोना वायरस का।
जिसकी प्रिय विधा कहानी है
वह कह नहीं सकता - कोरोना वायरस के लिए।
और जब ये कु्छ नहीं कर सकते तब
यह देख कर मैं...
इंसानों को डरा सकता हूँ
उसका नाम लेकर –
सावधान रहो कहकर।
क्योंकि मैं लिखता हूँ सिर्फ डर।
क्योंकि डर के पीछे... धन है।
मेरी प्रिय विधा डर ही है
चाहे मैं अखबार हूँ या टीवी।
या हूँ किसी मंत्री की कुर्सी के पीछे छिपा देश का भविष्य।
हूँ चोटिल चेहरे वाला सुधार भी।
दुःख है कि मंदिरों-मस्जिदों में भी हूँ।
लेकिन मर जाता है मेरा नामुराद दिल
क्योंकि अपनी सर्व-व्यापकता के कारण
मै डर को बना के बहुत बड़ा पर्दा,
स्कूलों में भी हूँ।
काश! न होता।
काश! होता उसकी चिकित्सा - जिसका डर हूँ।