कोरी जिंदगी
कोरी जिंदगी
ख्वाब था रंगीन कोरा रह गया।
सोचा क्या था और क्या हो गया?
भटकता रहा तुमको हर सुख, देने के लिए,
तुम चली गई दुनिया से ,और सामान यूं ही जोड़ा रह गया।
देखे थे जो सपने साथ जीने मरने के।
साथ तुम्हारे सुबह शाम बरामदे में बैठकर चाय की चुस्की भरने के।
तुम्हारे जाते ही सब अधूरा रह गया।
वह मसरूफियत जाने कहां पर खो गई?
मैं तो बंद कमरे में अकेला रह गया।
वह भीड़ लोगों की जो थी तुम्हारे होने से।
आज तुम्हारे जाते ही मैं तो अकेला हो गया।
बहुत कुछ है मेरे पास कि खुद को अमीर साबित कर दूं मैं,
पर तुम बिन अमीरी का हर जुड़ा सामान भी कूड़ा हो गया।
काश ख्वाब की जगह मैं जिंदगी रंगीन कर लेता,
आज केवल ख्वाब ही नहीं मैं भी कोरा हो गया।