कॉलेज लाइफ
कॉलेज लाइफ
बचपन में बाहर की जिंदगी एक सपना था ,
जिंदगी का बोझ उठा ,
हमे भी थकना था ,
थी ये ख़्वाहिश की हम भी बड़े हो जाए,
अपने पैरों पर खड़े हो जाए !
बड़े उतावले थे कॉलेज जाने को
जिंदगी का अगला पड़ाव पाने को!
जिस दिन कॉलेज में पहला कदम रखा
उस दिन एहसास हुआ की,
पूरी तरह बेकार है ये
ये जो मेरा जोश है ,
अरे हम तो कछुए है
यहाँ पूरी दुनिया खरगोश है !
देखते ही देखते हर कोई अपना यार हो गया,
और पता नहीं कितनों से प्यार हो गया,
कुछ मज़ाक हुए, कुछ किस्से हो गए,
बहुत जल्द ही हम भी इस दुनिया के हिस्से हो गए !
हर टीचर की डांट पड़ती थी,
पर इसका ग़म नहीं था
3 लेक्चर के बाद क्लास में बैठना
सीमा पे युद्ध लड़ने से कम नहीं था !
कुछ इस तरह कॉलेज के प्रति
हमारी शाहदत हो गयी थी,
कॉलेज जा के भी कॉलेज ना जाना
अब आदत हो गयी थी!
जिंदगी के बोझ से ज्यादा भारी तो
असाइनमेंट्स और रिकार्ड्स के बोझ लग रहे थे ,
10 बजे तक सोने वाले ,
अब रात भर जग रहे थे !
हर टीचर के पास हमारी शिकायतों का हार रहता
पर हमे क्या , हमे तो बस साल भर
फ्रेशर और फेयरवेल का इंतज़ार रहता !
पता नही हमसे क्या दुश्मनी थी
हमारी ख़ुशियों के सिलसिले को तोड़ा जाता था
सेमेस्टर नमक बम
हर छह महीने में एक बार
हम पर फोड़ा जाता था!
हालत कुछ ऐसी थी की ,
हर viva में पूछा जाता
"आखिर आप क्यो मौन है "
और नाम तो कुछ ऐसा था की
फाइनल ईयर में भी टीचर देख बोलते
" इससे पहले कभी नहीं देखा ,
ये फरिश्ता कौन है? "!
माना की हम शरारती थे ,
दोस्तों के लिए हम भी लड़ते थे
पर समय आने पर
हम भी किताब उठा पढ़ते थे !
माना की जिंदगी का रेस तेज़ था
पर ऐसा नहीं की हमे किसी का भय था ,
खरगोश बेशक तेज़ भागता था
पर कछुए का जीतना तय था !
