कोई मेरे साथ नहीं है माँ
कोई मेरे साथ नहीं है माँ
मैं बहुत अकेली हो गयी हूँ
कोई मेरे साथ नहीं है माँ
ये सावन आता है
चला जाता है
जिसमें सारी तकलीफे धुल जाये
ऐसी कोई बरसात नहीं है माँ
कोई मेरे साथ नहीं है माँ
सर्दी की धूप भी अब चुभन बन आती है
बसंत की बहारें मुझे डराती हैं
पग- पग कठिनाइयों ने घेरा है
पर आज हिम्मत देने के लिए
पास न तेरे आँचल की छाया
न तेरी ममता का सवेरा है
सारी दुनियाँ आज संग- संग चलती
पर जिसमें चेहरे चाँद से खिल जाये
बिछडों को अपने मिल जाये
ऐसी कोई बारात नहीं है माँ
कोई मेरे साथ नहीं है माँ
वो भी क्या दौर था माँ
जब तू पास थी
पर कभी मेरी किताब ने
कभी मेरे सुलझे नसुलझे से हिसाब ने
मुझे तुझसे दूर कर दिया
तु तरसती थी मेरी बातों, मेरी शरारतों
के लिए
पर मेरे सपनों, मेरी इच्छाओं ने
मुझे मजबूर कर दिया
आज आँखे तरसती हैं तेरी सूरत को
मन ढूँढता तेरी मूरत को
पर जहाँन में तेरे प्रभात नहीं है माँ
कोई मेरे साथ नहीं है माँ।