कोई इंसान नहीं
कोई इंसान नहीं
भीड़ भरे शहर में, हर तरफ यहाँ वहां
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
लुट गया कोई मर गया कोई
हर किसी को हर हाल में रोते देखा
कौन है जो यहाँ परेशान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
दौलत के भंवर में, कुछ लोग ऐसे खोए हैं
पूछते हैं कौन हैं वो और कहाँ से आये हैं
दूसरों की क्या, खुद तक की पहचान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
बाप बेच के खा जाये अपने बच्चों को
बेटा बाप को फूटपाथ पे फ़ेंक आया
धरम के ठेकेदारों का कोई ईमान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
देख कर हालात अच्छों की सारे
चोरी के ही तरीके सीखतें हैं
इसा बनने का किसी का अरमान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
हर उम्र के लोगों से डरता हूँ मैं
बूड़े, जवान या फिर बच्चे
क़यामत के शहर में कोई नादान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
तडपता देखा जो सड़क पर आदमी मैंने
दूर ही से रास्ता बदल लिया मैंने
रस्म ए शहर से मैं भी अब अनजान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या चर्च देखी
हर कोने में दुनिया के जा कर देखा
जो देखी न हो ऐसी कोई दुकान नहीं
आदमी देखे बहुत पर कोई इन्सान नहीं