कोहलू का बैल
कोहलू का बैल
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मेरे और कोहलू के बैल में,
सिर्फ एक फ़र्क है
कोहलू का बैल अपने को
पीसे जाते देख नहीं पाता,
जबकि मै अपने को
रोज पिसते देखता हूँ।
रोज मेरे अपाहिज बाप की
असंख्य गालियां,
असंख्य कोणों से मेरे शरीर में
प्रवेश करती है और मेरे शरीर में
रंगबिरंगी चिंगारियां छेड़ने लगाती है।
रोज मेरी कृशकाय माँ की निरीह, निस्तेज आंखे
मेरे शरीर को सहलाती गुजर जाती है
तो मेरी आंखे गल गल कर बहार आने लगाती है।
रोज मेरी बिन ब्याही अधेड़ बहन की जवानी,
गल गल कर मेरे सामने से गुजरती है तो,
मेरे दिल के भीतर का नासूर
रिस रिस कर उसका साथ निभाने लगता है।
रोज मेरी सूखी, बुझी बीबी
फटे कपड़ो से शरीर को असफल ढकती हुई,
मेरे शरीर से लाश जैसी चिपककर,
जार जार रोती है, तो मुझे अपनी मुर्दनी
साफ साफ नज़र आने लगती है।
रोज मेरा बीमार, मरियल बेटा पप्पा पप्पा कहता,
मेरी अंगुली थाम लेता है, तो
अपने अरमानो का खून करने के,
अपराध भाव से ग्रसित होकर,
अपना सर दीवार से टकराने के सिवा
कुछ नहीं सूझता।
रोज घर से बाहर जाने पर,
लोग उधार के तकाजे पर ,
तरह तरह से जलील करते है, तो
सिर्फ एक भाव उभरता है
पूरे परिवार सहित विषपान कर लिया जाये
और रोज रोज के मरने से छुटकारा पा लिया जाये।