कंटक पथ पर अनवरत...
कंटक पथ पर अनवरत...
कभी मेरा मन बस यूँ ही उदास सा हो जाता है
यूँ ही किसी से कहने सुनने का मन हो जाता है!
पूर्वाग्रहों के विचारों पर ये कोहरा जब छाता है
फिर बरसती हैं आँखें जीवन दूभर हो जाता है!
पग लहूलुहान लिए कंटक पथ चलता रहता
और नहीं विकल्प तो राहें कैसे बदल सकता है!
मेरे दिल से पूछो कितना रोता है यह अकेले में,
जब साथी मझधार में छोड़ पीठ फेर चल देता है!
