कलयुग का तराजू
कलयुग का तराजू
नर से भारी नारी है,
फिर भी क्यों दुखों की मारी है?
कलयुग के तराजू में आज,
नर का पलड़ा ही क्यों भारी है??
रावण की लंका चमक रही है,
राम जी की अयोध्या क्यों खो रही है?
रावण के सिर तो बढ़ रहे हैं,
श्री राम जी क्यों सिकुड़ रहे हैं?
कलयुग के तराजू में आज,
क्यों रावण ही खड़े दिख रहे हैं??
अहिंसा और शांति के रास्ते सब छोड़ रहे हैं,
हिंसा और अशांति के रास्ते पर क्यों चल रहे हैं?
देशभक्ति की भावना के दिए निरंतर बुझ रहे हैं,
देशद्रोह की मशालें लिए लोगों के हाथ क्यों बढ़ रहे हैं?
कलयुग के तराजू में आज,
सब बुराईयों को ही क्यों पूज रहे हैं??
रोशनी की ताकत तो घट रही है,
अंधेरे की सीमाएँ क्यों बढ़ रही हैं?
हर गली, हर मोड़ पर क्यों
विवादों में ही जिंदगी उलझ रही है?
कलयुग के तराजू में आज,
क्यों स्वार्थ की ही भीड़ बढ़ रही है??
भाई-भाई में प्यार नहीं है।
आँखों में सम्मान नहीं है।
चंद रुपयों के लालच के लिए,
रिश्तों की भी कद्र नहीं है।
कलयुग के तराजू में आज,
क्यों इंसानियत की भी जगह नहीं है??