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Kusum Lakhera

Tragedy Fantasy Inspirational

4  

Kusum Lakhera

Tragedy Fantasy Inspirational

कल्पना की दुनिया

कल्पना की दुनिया

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उसने यथार्थ की दुनिया की कड़वी सच्चाई

देखी थी

उसने सुने थे ऐसे ऐसे ताने जो कानों में जलते शीशे

से प्रतीत होते थे

उसकी राह में मानो विधि ने पग पग में कांटे बिछाए थे

जब भी चली पैर हो जाते थे लहूलुहान

उसकी आँखों से सावन की फुहार सी होती थी


दुःख की घड़ी में न कोई होता था उसके पास

वह उदास अकेले ही रोती थी

वह ईश्वर को भी करती थी याद पर न जाने क्यों

उसे लगता था कोई भी नहीं सुनता फ़रियाद

दुःख की शय्या पर मानो वह परेशानी से सोती थी !


तब इस विकराल घड़ी में वह अपने अवचेतन मन में

कई स्वप्न पिरोती थी

वह देखती थी अपनी कल्पना में प्यारा सुंदर संसार !

जहाँ न दुःख सताता था न डर ही अट्टहास लगाता था !


जहाँ न आंसुओं की धार थी न नफरत की तलवार थी 

जहाँ नित करिश्मे होते फूलों के अंबार में भँवरों की

गुंजार थी !

जहाँ उजले ख़्वाब थे दुख का अंधियारा न था

जहाँ प्रेम का सागर हिलोरे लेता घृणा का कोई मारा न था !

अब उसने अपने सपनों के संसार से रचा एक सुंदर संसार !


फ़िर अपनी कल्पना को किया शब्दों से साकार

वह लिखने लगी प्यारी कहानी

जो सबको भाती थी !

वह बुनने लगी कल्पना की सलाइयों से कुछ ऐसे किरदार !

जो करते थे नित नवीन चमत्कार जो बिखेरते थे प्यार !


वह इस तरह अपनी कल्पना की

दुनिया से चहुँ ओर

भय मुक्त तनाव मुक्त भावों से

 लोगों को बहलाती थी !

इस तरह अपनी कल्पनाओं से वह यथार्थ के दुखों को

धीरे धीरे भुलाती थी


और सोचती थी कि जीवन में जब दुःख का पलड़ा भारी होता है !!

जब व्यक्ति दुःख को पहाड़ सा ढोता है

तब ये कल्पना की दुनिया उसे सकारात्मक रहना सिखाती है !


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