कलंक
कलंक
ये किसकी दस्तक है
कैसी बेहोशी छायी
सुबह की खुशहाली पर
अचानक कैसी ग्रेहण लगी
ख्वफ की आंधी ऐसी उमड़ी
आन बान शान को रौंदता चला गया
सगा कोई अपना अजनबी कैसे बना
मां की दामन को भी ना छोड़ा
अपनी मैले हाथों से छूउं कैसे लिया
ये जल्लाद कौन थे काहं से आये
किस रावण की साजीश थी ये
हैरान है पूरी दुनिया
जाहां सदा अमन की हवा चले
और मिट्टी में अमृत बरसे
ऐसी एक पून्यतिथी पर
शहीदों की शहादत का मज़ाक उड़ाने का जूर्रत की
खेतो पे हरियाली लोहोरानेवाला
खून का प्यासा कैसे बना ?
समय की धुल इस कलंक को मिटा पाएगा ?
या इतिहास के पन्नों पर काला धब्बा बन जाएगा।
