STORYMIRROR

Lipi Sahoo

Tragedy

4  

Lipi Sahoo

Tragedy

कलंक

कलंक

1 min
349

ये किसकी दस्तक है

कैसी बेहोशी छायी

सुबह की खुशहाली पर

अचानक कैसी ग्रेहण लगी

ख्वफ की आंधी ऐसी उमड़ी


आन बान शान को रौंदता चला गया

सगा कोई अपना अजनबी कैसे बना

मां की दामन को भी ना छोड़ा

अपनी मैले हाथों से छूउं कैसे लिया

ये जल्लाद कौन थे काहं से आये


किस रावण की साजीश थी ये

हैरान है पूरी दुनिया

जाहां सदा अमन की हवा चले

और मिट्टी में अमृत बरसे

ऐसी एक पून्यतिथी पर


शहीदों की शहादत का मज़ाक उड़ाने का जूर्रत की

खेतो पे हरियाली लोहोरानेवाला

खून का प्यासा कैसे बना ?

 समय की धुल इस कलंक को मिटा पाएगा ?

 या इतिहास के पन्नों पर काला धब्बा बन जाएगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy