कितना जरूरी ( गीत )
कितना जरूरी ( गीत )
कितना जरूरी ( गीत )
कितना जरूरी है जहान ,
जरूरी आसमां , जरूरी है मकान - २
फिर भी ना जाने कैसे रोष है ,
हर कोई दोषी दोष में ,
अपनों के संग ही द्वेष है
ये मानवता है या कोई बदला हुआ भेष है।
कितना जरूरी है दान
जरूरी उपकार , जरूरी है व्यापार - २
फिर भी ना जाने कैसी सोच है
लूटेंगे सबको हम बेहोशी में ,
मन में कैसा पाला ये दोष है
ऐसे लालच से ही रिक्त होता देश कोष है।
कितना जरूरी है जीवन
जरूरी अपनापन , जरूरी है धन - २
फिर भी ना देखे कर्म मदहोश है
तू बैठा है अपने ही अहंकार में ,
तूने सिर्फ जिया जीवन ये दोष है
ऐसा जीवन जीना भी तेरा मानव निराधार है।
कितना जरूरी है जहान ,
जरूरी आसमां , जरूरी है मकान - २
