किताब
किताब
कागज़ मेरे सामने रखे
दो पल में पूरे भर गए
जाने कब क्या सोचा
बस किताब लिख भए
अब गुरु इसे पढ़ेगा कौन
यही सोच सोच हुए पतले
फ्री में बटेंगी सब कापियाँ
या दाद देगा सुनकर मतले
किताबें इतनी लिखी जातीं
पढ़ी क्यों जाती हैं काफी कम
शायद अजायबघर में दिखेंगी
उनके साथ सेल्फियाँ लेंगे हम
कोई हमारी भी छापेगा किताब
इसीलिए प्रतियोगिता में भाग लिया
पाठक रात रात को करेंगे मैसेज
बहुत दिन यूं ही अकेले जाग लिया।