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Kanchan Prabha

Abstract

4.9  

Kanchan Prabha

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अनोखी दुनिया

अनोखी दुनिया

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जीवन के रंगत तरह-तरह की

लोगों की संगत तरह-तरह की

कभी इन्द्रधनुष सी जिन्दगी 

कभी तीर धनुष सी जिन्दगी 

कोई कीचड़ में खिल जाता है

कोई धरती में मिल जाता है 

कभी बरसाते सूरज आग

कभी चंदा में दिखता दाग

कोई सड़क पर लिये कटोरा

कोई रिश्वत से भरता बोरा 

मंदिर में दुध की नदी बहाये

भूखे बच्चों को नींद ना आये

सर्प लपेटे जिसको काली

चंदन की वो छटा निराली

सरसों धान की खेती होती

क्यों किसान की पत्नी रोती

बेटी को दिया इतना प्यार

फिर छोड़ा क्यों अनजाने द्वार

जाने क्या क्या सोचे मुनिया 

बड़ी विचित्र बनी ये दुनिया।



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