जिंदगी के लम्हे
जिंदगी के लम्हे


रे पथिक इस जिंदगी में दर्द क्या है क्या जलन है मिलना
बिछुड़ना दुःख सुखों का जिंदगी मीठा सपन है
दीप की हर कांपती लौ झूमती है आँधियों
से कह रही है मूक भाषा उन पथिक राहियों से
जो बढे निज मंजिलों पे मधुर सौ- सौ आस लेकर
धैर्य से लो काम जग में जिओ अटल विश्वास लेकर
चूम लेंगी चरण मंजिल जो अगर मन में लगन है
हर कली को सुमन बनकर मुस्कुराना है चमन में
हर विहग को तोड़ बंधन मुक्त उड़ना है गगन
में किन्तु पथ में फूल भी मिलते कही पर शूल भी है।