एक पल न देखा सुख का मैंने
एक पल न देखा सुख का मैंने


छोड़ा जब से बाबुल का घर सुख का एक पल न देखा मैंने
आई थी छोड़ बाबुल का घर नया बसाने संसार
न जाने क्या किस्मत थी मेरी घर मिला न संसार
वन वन भटकी कंकड़ पत्थर पर मैं सोइ
छोड़ कर छप्पन भोगों को कंदमूल मैंने हां खाई
त्याग दिया सब सुख अपना फिर कोई नहीं मेरा अपना
जिस पति को माना परमेश्वर उसने ही मुझ को छोड़ दिया
जन्म जन्म के नाते को एक पल भर में ही तोड़ दिया
रही थी जिसके चंगुल में परछाईं न उसकी पड़ने दी
और तेरे सिवा इन आँखों में तस्वीर न दूजी बसने दी
जब छोड़ना ही था मुझको तो क्योँ अग्नि परीक्षा मेरी ली
क्या विश्वास नहीं था मुझ पर जो तेरे प्रेम को तरस गई
बेटे से बढ़कर जिसको माना छोड़ा उसने जंगल में
भटक रही थी इधर उधर जब शरण मिली एक कुटिया में
em>
दो बच्चों को जन्म दिया और राम नाम का पाठ पढ़ाया
माँ के लिए फिर युद्ध किया और अश्वमेघ को पकड़ लिया
महावीर और महा पराक्रमी अति बलशाली हार गए
और जिनके ऊपर माँ का हाथ वो विजय पताका लहरा गए
उठा धनुष जब श्री राम पर तो माँ सीता विचलित हुई
और तीनों लोक हां काँप गए
रोका अपने लालों को लव कुश जिनका नाम था
महा प्रलय और महा प्रचंड उन दोनों का युद्ध था
जब बतलाया सीता माँ ने राम नाम ही पिता श्री हैं
लव कुश को फिर गुस्सा आया धनुष उठा और दोनों बोले
छोड़ दिया माँ जिसने तुम को वो कैसे ये पिता श्री हैं
फिर माता सीता बोलीं यही हैं मेरे पति परमेश्वर यही
तुम्हारे पिता श्री हैं
पिता पुत्र को मिला दिया और जिस धरती से पैदा हुई
उसी धरती में समां गई वो नारी माँ सीता थी