सच्ची घटना
सच्ची घटना
उजड़ गया अब मेरा घोंसला
टूट गया अब मेरा हौसला
तड़प रही थी चीख रही थी
नोच रहा था फिर भी दरिंदा ..
दर्द से में यूँ बिलख रही थी
आँखों में थे खून के आंशू
जीभ भी मेरी काटी गई थी
चीख न पाए नारी अबला
गला भी मेरा दबा दिया
टूटी मेरी गले की हड्डी
रीढ़ भी मेरी टूट चुकी थी
चार दरिंदे नोच रहे थे
बारी बारी से नोच रहे थे
समझ कर मुझको
एक मांस का टुकड़ा
कुत्तों की तरह वो झपट रहे थे
पंद्रह दिन तक तड़प रही थी
मौत भी मुझको छोड़ गई थी
माँ मेरी हां बिलख रही थी
अपनी बेटी को तरस रही थी
तड़प रहा था बूढ़ा बाप और
बिलख रही थी बूढी माँ
मेरी बेटी का मुँह तो दिखा
दो हस रहे थे लकिन दरिंदे
मौत भी बैरन कैसी आई
घर वालो तक मैं पहुंच न पाई
और डाल पेट्रोल आधी रात
को मेरी लाश की राख बनाई !