तुम क्यों सहती हो
तुम क्यों सहती हो
चाहे कितने जुल्म हो तुम पर, ख़ामोशी से तुम सहती हो
नहीं किसी से कुछ कहती हो, नारी तुम क्यों सहती हो ..?
मन में कितना दर्द छुपाए, होठों पर मुस्कान छुपाए
धरती सी गंभीर हो तुम, नारी तुम क्यों सहती हो ...?
दामन में कितने भी हों कांटे, फिर भी प्यार सभी को बाँटें
अपने जख्म छुपाकर भी तुम, सदा सुमन तुम खिलती हो
नारी तुम क्यों सहती हो ....?
खून पिला कर जिनको पाले, वो ही नर्क की आग में डाले
अंगारों पर चलकर भी तुम, शीतल छाव बनी रहती हो
नारी तुम क्यों सहती हो ....?
तुम ही दुर्गा तुम ही महामाया, तुमने सारा जगत बनाया
औरों पर निर्भर रहती हो, नारी तुम क्यों सहती हो ...?
जागो तुम खुद को पहचानो, शक्ति तप हो तुम यह जानो
बहुत हुआ घुट घुट कर जीना, तुम लड़कर भी जी सकती हो
नारी तुम क्यों सहती हो ...?
