चमन और ख़िजाँ
चमन और ख़िजाँ


आज ग़ुलों में उठ रही ये क़यास है,
ख़िजाँ आने को है, चमन उदास है !
तितलियों ने भी, रास्ता बदल लिया,
उन्हें भी हुआ ये एहसास-ऐ-यास है !
पत्तों ने भी दामन छोड़ा दरख्तों का,
बैठ रहा यहाँ ख़िजाँ का इजलास है !
माली भी ताके उजड़ते गुलशन को,
उसे भी बिछुड़ने का ये एहसास है !
मैंने गुलशन को देखा रेगज़ार बनते,
ये हक़ हमने देखा ख़िजाँ के पास है !
ज़िन्दगी में गुलशन बसे, ख़िजाँ आए,
हर मौक़ा मान के चलो कि ख़ास है !