किसे मारने को
किसे मारने को
सड़क पर ये पत्थर बिखरे पड़े हैं, किसे मारने को।
शहर में हर जगह इंसान खड़े हैं, किसे मारने को,
जातपात, मज़हब में बटें इंसान इंतिख़ाबी बाजार में
लौट आये फिर वही सियासी धड़े हैं, किसे मारने को,
ये बेवा औरतें, वो यतीम बच्चे सवाल पूछते हैं
अबकी बार दोनों ज़मात लड़ी हैं, किसे मारने को,
मुल्क के बज़ुर्गों के तो अब अश्क़ भी सूख गए
उम्र भर है पूछा, कौन अड़ें हैं, किसे मारने को,
सफ़ेद पे लगे हरे, नीले-पीले, भगवे पैबंद
फ़क़ीर की चादर पे जड़ें हैं, किसे मारने को,
हर मज़हब ने तो खुदा की बंदगी सिखाई
फिर आज क्यों झगड़े हैं, किसे मारने को
'दक्ष' जाहिलों की अक़्ल पे पत्थर पड़ें हैं,
तुम ना पूछो क्यों खड़ें हैं, किसे मारने को।
