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Mohsin Atique Khan

Tragedy Inspirational

4  

Mohsin Atique Khan

Tragedy Inspirational

किसानों का इन्क़िलाब

किसानों का इन्क़िलाब

2 mins
258


दिसम्बर की ठिठुरती रात में

नहर के किनारे बैठा 

पानी के इंतज़ार में 

गेहूं की फसल को

आखिरी सिंचाई की ज़रूरत


कितनी रातें गुज़र गयीं 

मगर पानी को न आना था न आया

वैसे भी

ज़रूरत के वक़्त 

पानी नहर में आता ही कब है


जून का महीना आन पहुंचा

सर से लेकर पैर तक

पसीने में शराबोर

चिलचिलाती हुई धुप 

आफताब अपनी तमाज़त की आखिरी हद में 

बादलों के दीदार को तरसती ऑंखें 


नहर में पानी नदारद

ट्यूब वेल के पानी का स्तर

शायद बहुत निचे जा चूका है

धान के खेतों की ज़मीनों में 


जगह जगह दरारें

एक एक बून्द को तरसते

धान के छोटे छोटे पौदय

बिस्मिल की तरह तड़प रहे हैं। 


खैर, फसल तैयार है

आधी तीही ही सही

मगर यह क्या

कीमतें इतनी कम

क्या इस फसल की

लागत निकल पायेगी 


क्या अगली फसल के लिए 

कुछ जुगाड़ हो पायेगा

क्या साल भर के लिए 

खाने को बच जायेगा

उफ़ कितने सवाल हैं


कितनी परेशानकुन

फिर यह ऊपर बैठे लोगों को

क्या हुआ है ?

क्या उन्हें हमारी कुछ फ़िक्र भी है

एयर कंडीशन कमरों में बैठ कर 

यह कैसे क़ानून बनाते हैं

 

हमारी तकलीफों को क्यों बढ़ाते हैं

क्या हमारे पास कुछ चारह है

सिवाए उठ खड़े होने के

अपनी आवाज़ बुलंद करने के

इन्किलाब की गूंज सुनाई देनी चाहिए


उन्हें हमारी मुश्किलात का पता चलना चाहिए

अगर वह हमारी सुनते नहीं 

इन्तेहाई बेहिसि के साथ

तो किस हक़ से उन कुर्सियों पर

जमे बैठे हैं


हम डटे रहेंगे पूरी हिम्मत से

पुलिस की लाठियूं के सामने

पानी की बौछारों के सामने

सर्दी की ठण्ड रातों के सामने

खुले आसमान के नीचे

हम पार करेंगे 


खुदी हुई सड़कों को

कंटीली बाढ़ों को

उन्हें सुन्ना ही होगा

हमारे इन्किलाब को आवाज़ को

उन्हें वापस लेना ही होगा 

काले कानूनों को।


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