सोचता हूँ कि नए साल पर मैं क्या लिखूं
सोचता हूँ कि नए साल पर मैं क्या लिखूं
इन्क़िलाब की नयी दास्तान लिखूं
या ज़िन्दगी की नयी शाम लिखूं
सुबहे नौ की उम्मीद लिखूं
या शाम के पुराने धंधलके लिखूं
सोचता हूँ कि नए साल पर मैं क्या लिखूं
तख़्त-ए-शाही पर बैठे बूढ़े की नफरत लिखूं
या पुलिस की गोली खाते युवा की मोहब्बत लिखूं
अहंकार में डूबी हुकूमत लिखूं
या रोड पर उतरी जनता लिखूं
सोचता हूँ कि नए साल पर मैं क्या लिखूं
सर्द रातों में ठण्ड से लड़ती शाहीनें लिखूं
या ठण्ड से अकड़ते बच्चों के चेहरे लिखूं
कानून की काली किताब लिखूं
या संविधान पर लगते धब्बे लिखूं
सोचता हूँ कि नए साल पर मैं क्या लिखूं
अपने दिल की बेचैनी लिखूं
या आँखों के छलकते अश्क लिखूं
अपने ज़हन की उलझन लिखूं
या लोगों पे लगे बंधन लिखूं
सोचता हूँ की नए साल पर मैं क्या लिखूं
युवाओं के अज़ाइम लिखूं
या युवतियों के हौसले लिखूं
झूठ की छंटती स्याही लिखूं
यार ज़ुल्म के ढलते बादल लिखूं
सोचता हूँ की नए साल पर मैं क्या लिखूं