चंद्रयान की नज़र
चंद्रयान की नज़र
आख़िरश तुम को मिल गई मंज़िल
रतजगों का सिला समझते हैं
वस्ल के दिन तुम्हें मुबारक हों
इश्क़ में गिर के ही संभलते हैं
क्या हंसीं इतना है क़रीब से वह
जितना हम दूर से समझते हैं
उस से कहना की उससे मिलने को
हम यहाँ पर बहुत तरसते हैं
उसके ज़िक्र-ए-जमाल से सारे
हुस्न वाले यहाँ लरज़ते हैं
क्या तुम्हारे यहाँ ज़मीं की तरह
पेड़ पौधे भी कुछ पनपते हैं
क्या हवा ख़ुन्क है यहाँ की तरह
क्या वहां भी सुबु लुढ़कते हैं
क्या वहां भी है बादलों का समां
क्या वहां भी वह यूँ बरसते हैं
चंद्रयान हुस्न की जनाब में हैं
नाज़ुकी हुस्न की समझते हैं
कितने नखरे उठाने पड़ते हैं
कुछ गिले शिकवे को समझते हैं
मुश्किल लफ़्ज़ों के माने: आख़िरश:आखिरकार, ख़ुन्क:ठंडी, वस्ल:मुलाक़ात, डेट, सिला: बदला, हंसीं: सुन्दर, ज़िक्र-ए-जमाल: खूबसूरती का तज़किराह, सुबु: सुराही, गिले शिकवे: शिकवह, शिकायत