किनारे
किनारे
तुम मुझे और मैं तुम्हें निहारे रहें,
कभी मिलन होगा न हमारा
पर
साथ साथ चलेंगे न हरदम।
धीर गंभीर बन अनवरत्।
मिलन की चाहत नहीं,
बिछोह का भय नहीं,
पर
माझी को सहारा देते रहे,
धरा और जल का मेल रहे,
किनारे तो किनारे हैं,
लोगो के सहारे न हैं।
खुद भले ना मिल पाये
मगर
लोगो को मिलवाते रहें।

