बादल
बादल
मन हल्का करने को जब, तरस तरस मैं जाती हूं।
देख बरसते तुझको, कुछ हल्की हो जाती हूं।
बिन बादल बरसात ना होय, मन मेरा क्या यूं ही रोये।
सखी व्यथा साझा करने को, व्याकुल मैं हो जाती हूं।
देख बरसते...
संवेदना से उपजी वेदना, क्रोध, मोह की त्याग चेतना।
ना जाने कब नयनों से, नीर बहाकर आती हूं।
देख बरसते...
सखी शिकायत नहीं किसी से, मन मेरी कमजोरी है।
होते ही स्पर्श अपनों का, पिघल पिघल मैं जाती हूं।
देख बरस तुझको, कुछ हल्की हो जाती हूं।