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Ragini Uplopwar Uplopwar

Romance

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Ragini Uplopwar Uplopwar

Romance

बिखरते सपने

बिखरते सपने

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सोते जागते बस स्वप्न देखती हूं मैं,

समीर के झोकों से,

उड़कर कभी आकाश को,

बाहों में समेटना चाहती हूं मैं।


अथाह सरोवर की गहराई से,

कभी कमल को पाना चाहती हूं मैं।

मेरे स्वप्न की नियति यही है,

केवल जल से भीगा हाथ,

देखती रह जाती हूं मैं।


बिखरते अनछुयें स्वप्नो का,

मोह जगत मेरा,

किंकर्तब्य विमूढ़ धरा पर खडी हुई,

हाथ से फिसलती रेत,

देखती रह जाती हूं मैं।


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