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Ragini Uplopwar Uplopwar

Children Stories

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Ragini Uplopwar Uplopwar

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आभार कैसे करूं

आभार कैसे करूं

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वो जिन्हें मैं भूल नहीं सकती,

वो मेरे नौकरी के नये नये दिन थे,

वो मेरे गृहस्थी के भी प्रारंभ के दिन थे।

कठिन होते हैं वे दिन

परीक्षा के होते हैं वे दिन।

नौकरी करना कोई शौक न था,

पर, घर में सबका सोचना यह था।

बात बात में नौकरी छोड़ देने का आदेश,

सहज स्वीकार्य भी न था।

तानों से अकुलाता मन,

बात बात में डरता मन।

है विश्वास ईश्वर में

नैय्या पार लगाएगा।

अंधेरा जाएगा उजियारा तभी आएगा।

देवदूत से मेरे प्राचार्य

पिता तुल्य जिनका है मान।

नयनों में थे अश्रु हाथ में त्याग पत्र

त्यागपत्र रख जेब में सहजता से बोले,

समय बड़ा बलवान है व्दार वहीं खोले

कुछ दिन लंबी छुट्टी पर जाओ,

घरवालों की सेवाकर आओ।

उनका मन भी सहलाओ।

सब ठीक हो जाए तो

वापस नौकरी पर चली आओ।

आश्वासन और आशीर्वाद लें उनका

ले ली लंबी छुट्टी।

समय कटा अच्छा,घरवालों ने दी इजाज़त

कहा-कितने दिन लोगी छुट्टी।

अब तो नौकरी पर हो आओ।

लंबा बीता अंतराल,पर यादें बिल्कुल ताजी है

आभार कैसे करूं,

छवि जिनकी नयनों में बिराजी है।



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