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Juhi Grover

Tragedy

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Juhi Grover

Tragedy

ख़्वाहिशें दफ़नाना बाकी है

ख़्वाहिशें दफ़नाना बाकी है

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अरमानों की लाशों को जलाना अभी बाकी है,

कुछ ख्वाहिशों को बस दफ़नाना ही बाकी है।


जो  हुआ  उस  का , कभी  मलाल  न  था,

मगर  आज  फिर   क्यों  वो ख्याल आया,

वक़्त वो पीछे छूट गया  था कब का बहुत,

फिर  क्यों याद  मुझे बस वो सवाल आया।


सवाल बिल्कुल भी वो इतना मुश्किल न था,

फिर भी न मुझे कभी उस का जवाब आया,

राह जहाँ कभी भूले थे वहीं खड़े ही रह गये,

मुझे  चलने का न  कोई क्यों हिसाब आया।


ज़िन्दगी  मुकम्मल  होने  के  लायक  न थी,

फिर भी मौत का क्यों नही मुझे ख़्वाब आया, 

टुकड़े  टुकड़े  हो  बिखर  चुका था आशियाँ,

फिर भी देखने न क्यों मेरा ही मेहबूब आया।


लम्हा  लम्हा  उखड़  रही  थी  साँसें  मेरी,

तेरे  दिल में क्यों न अश्कों का सैलाब आया,

हम  तो  बिना  बाढ़  के  ही डूब  चले थे,

वक़्त मेरा ही क्यों इतना अब खराब आया।


ज़िन्दगी  को  मौत के  गले लगते  देखा था,

ऐसा ही ज़ख्म दिल ने  क्यों  बेशुमार खाया,

चोटें खाते खाते हज़ारों लाखों मौत मर चुके,

फिर  भी दिल को न क्यों अब करार आया।


ख्वाहिशों को पल पल यों ही बस मरते देखा था,

ज़िन्दगी के जीते जी क्यों न तेरा पैग़ाम आया,

मौत पे ही तेरी ख्वाहिशों का जनाज़ा देखा था,

तीरगी में भी क्यों न उजालों का ही सलाम आया।


शमशान  तक ही अरमानों को पहुँचा पाये थे,

मगर वहाँ न कोई क्यों फिर भी आफ़ताब आया,

कफ़्न लेकर भी हमें तब यों वापिस आना पड़ा था,

कब्र में दफ़्न होने का नहीं क्यों अब नसीब आया।


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