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Kumar Vikash

Romance

5.0  

Kumar Vikash

Romance

ख्वाबों की मलिका

ख्वाबों की मलिका

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आज शर्मा रहा आईना भी आप जो

सामने आये ,

न सवंरो तुम इतना की कांच कांच

बिखर जाये !

किसी के ख्वाबों की मलिका हो तुम

देख तुम्हें कोई और ललचाये ,

नजर उठा के देखो जो तुम ये आसमान

भी तुम्हारे कदमों में आये !


खिल गई कलियाँ और फूल बन गईं

नज़ाकत ये ऐसी किसी-किसी में आये ,

नशा जो तुम्हारी आँखों में है मय भी देखे

तो छलक जाये !


यूँ जाते हो किधर इतरा के तुम देखो जो

पलट के तो दिल को ज़रा करार आये ,

माना की तुम अमानत हो किसी की में

देखूं तुम्हें तो न ये खयानत कहलाये !!


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