ख़्वाब
ख़्वाब


ये हसीन ख़्वाब भी फिर कमबख्त
ना जाने क्यूँ दगा देने लगे हैं अब मुझे
फासले हम दोनों के दरमियान
जहां थे ना ज़रा भी कभी
ना जाने क्यूँ उन्हीं ख्वाबों में भी
लगने लगे हैं ये फिर अब मुझे
ये हसीन ख़्वाब भी फिर कमबख्त
ना जाने क्यूँ दगा देने लगे हैं अब मुझे
फासले हम दोनों के दरमियान
जहां थे ना ज़रा भी कभी
ना जाने क्यूँ उन्हीं ख्वाबों में भी
लगने लगे हैं ये फिर अब मुझे